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लेखक बन्धु सम्पर्क कर सकते हैं - 09672281281
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जब हम मित्रों से बिछुड़ जाएंगे
जवाब देंहटाएंनयी-नयी दुनिया की सैर के लिए
चले जाएंगे
एक शहर से दूसरे शहर
उस वक्त
मित्रों की प्यार भरी गालियां ही
कानों में गूंजेगी
हम लिख नहीं पाएंगे
पत्र
समय से लड़ने के लिए,
न ही सुरक्षित रख पाएंगे
भविष्य के लिए
अंतहीन समय को
तुम्हें क्या मालूम
उस वक्त बेचैनी
कितनी बढ़ जाएगी
तलवों के नीचे की आग
सिर तक चढ़ जाएगी
जूतों को खोलना भी
हमारे बूते के बाहर होगा
तब हम
बेचैनी को तोड़ने के लिए
सिर्फ करवट बदलते रहेंगे
ऐसे ही होगा
ऐसा ही होता है
जब-जब मित्रों से
बिछुड़ना होता है।
जीवन भर
बिछडने का डर हमेशा रहता है और दर्द भी देता है। अपनों ढूंढने के निकलते वक्त पहले वाले अपने भी बिछडते है। वर्तमान युवा पीढी केवल लंबी दौड और भागमभाग के लिए पैदा हो गई है। कारण उसके नसिब केवल रेस ही लिखी है। इस द्वंद्व को व्यक्त करती है कविता 'पास की दूरी :बिछुडना'।
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