‘’रामपुर’’छोटा
सा है पर अंधविश्वास और कुरीतियों से सरोबार था,सदियों पुरानी कुप्रथाए आज भी
प्रासंगिक है | जैसे –बाल-विवाह,स्त्री शिक्षा और विधवा –विवाह आदि|बाल –विवाह के
फलस्वरूप दुस्परिनाम भुगतते रहने के बाद भी आज भी बड़ी तादाद मै गाँवो और शहरों मै बालविवाह
होते रहते है|बाल विधवा को ही अभागी समझा जाता है या ईश्वरीय प्रकोप मान कर चलते
है |
गाँव के अस्पताल मै डॉ.की कमी के कारन बड़ी बीमारियों का इलाज शहर जाकर
करवाना गाँव वालो के बस मै नहीं होता है |परिणाम स्वरूप बाल मरतु दर ज्यादा होती
है फल स्वरूप बच्चियों को विधवा होने का दंश झेलना पड़ता है |
लेखिका |
विधवा का पुनः विवाह करना तो गाँव वाले अपने परिवार कि तोहीन समझते है
|इसके विपरीत बड़ी बूढी महिलाये विधवा को कैसे जीना है’उनके लिए अनेको कड़े कानून
कायदे निर्धारित करती है |कांटो भरा जीवन जीना पड़ता है खुली हवा मै साँस लेना तक
दूभर होता था
‘रामपुर गाँव मे लडकियों को पढाने कि इच्छा रखना तो जैसे रेगिस्तान मे
पानी की बूंद चाहने जैसा था |आगे जाकर घर का काम ही तो करना है फिर पढ़ कर कौन सा
बैरिस्टर बनना है | ये कहा जाता था |
ऐसे गाँव कि रहने वाली थी मेरी कहानी की नायिका सुधा | भाई बहनों मै
सब से छोटी होने के कारण हर चीज के लिये तरसना पड़ता था| इससे बड़े भाई बहनों कि जरुरत पूरी नहीं होती थी | किसी भी
मांग पर सुधा को ये सुनने को मिलता था कि ‘’पहले जो तुमसे बड़े है उनकी तो जरुरत
पूरी हो फिर तुमारा नम्बर है|
और वो दिन कभी सुधा के जीवन मे नहीं आया,पिताजी गाँव के ही जमींदार के खेत मे किसानी करते थे|परिवार कि
बुनियादी जरुरतो को ही मुश्किल से पूरी कर पाते थे ,तो बच्चो को स्कूल भेजना तो बहुत दूर कि बात
थी |जैसे तैसे कर के परिवार का भरण पोषण कर रहे थे |
एक दिन घर मे कोहराम मच गया सुधा के पिता ने सुधा के छ साल के पति के
किसी बीमारी से मरने कि खबर सुनाई |माँ को रोते बिलखते देख वो भी रोने लगी उसके
साथ जो घटित हुआ उससे तो बेखबर थी कि उसके तो भाग ही फूट गये |
उसका जीवन तो शुरू होने से पहले ही ख़तम हो गया था | मासूम बच्ची को अब
कांटो भरा जीवन जीना होगा ये सोच कर माँ का तो जैसे कलेजा मुह को आ रहा था |नियति
के क्रूर हाथो ने उसके कलेजे के टुकड़े का सब कुछ ले लिया था |
अब सुधा के माँ बापू पर कटे पंछी कि भांति हो दुखी थे कैसे उम्र भर
बेटी को संभाल सकेंगे ,दोबारा विवाह कर नहीं सकते|विधवा को हेय द्रष्टि से देखा
जाता थ अपशकुनी माना जाता था| परिवार कि बड़ी औरतों दवारा निर्धारित किये गये नियमो
के अनुसार ही हर विधवा को चलना था |
समय ने रफ़्तार पकड़ी अब सुधा चौदह साल कि हो गयी थी |वो कुछ काम करके
अपना जीवन यापन करना चाहती थी बोझ बन कर नहीं रहना था उसे |सुधा गाँव के ही एक सेठ
के घर मे काम करने लगी सेठानी को रसोई के काम मे मदद करने लगी और वो उनके घर मे ही
रहने लगी थी |एक बार सेठानी कि ननद मुंबई से आई उसने सुधा को देखा तो भाभी से कहा
‘आप इज़ाज़त दो तो सुधा सुधा को मुंबई ले
जाऊ ,तुरंत ही उसके बापू को बुलाया थोड़ी देर बाद वो सुधा को भेजने को राजी हो गये
सेठजी कि बहन थी तो सोचने कि तो कोई बात ही नहीं थी |
अब सुधा नई मालकिन सेठानी कि
ननद कविता थी |कविता ने सुधा को स्कूल मे दाखिला दिलाया और पढ़ाने के साथ साथ उसे
मुंबई जैसे बड़े शहर मे रहने के तौर तरीके भी सिखाने लगी |वहा कि भागती हुई जिन्दगी
मे लोग सवेरे जल्दी निकल जाते है और देर रात थके मांदे लोकल ट्रेनों मे सफ़र करते
हुए घर पहुंचते है |कविता और उसके पति भी ऑफिस मे काम करते है |
सुधा के मुंबई आने के बाद कविता के घर बेटी का जनम हुआ सुधा ने सब कुछ
संभाल लिया था |कुछ समय बाद बेटी कि जिम्मेदारी भी सुधा को सौप दी गयी थी |सुधा
कविता कि बेटी को अपनी बेटी कि तरह पालने लगी |उसे मान मनुहार करके दूध पिलाना ,खाना
खिलाना ,पार्क मे लेजाना आदि सब वो ही करती थी |जब नीलू स्कूल जाने लगी तो सुधा
उसे स्कूल छोड़ने और लेने जाती थी |
समय ने फिर रफ़्तार पकड़ी कविता के साथ रहते हुए सुधा को पच्चीस साल
होगये थे इस दौरान सुधा को कभी ये नहीं लगा कि कविता मालकिन और वो काम वाली बाई ह|
कहते है न कि बेटिया कब बड़ी हो जाती है माँ बाप को पता ही न चलता है |नीलू कि शादी
कि घर मे चर्चा होने लगी |कभी लड़के वाले कविता के घर आते कभी वो लड़का देखने जाते
थे |अब सुधा बैचैन रहने लगी वो सोच मे पड़ गयी कि बिना नीलू के वो कैसे रह पायेगी
|आख़िरकार नीलू का रिश्ता तय हुआ वो शादी के बाद अपने पति के घर चली गयी |
अब सुधा को खालीपन लगने लगा जैसे अब उसके पास करने को कोई भी काम नहीं
है |कविता और उसका पति सुबह ही ऑफिस चले जाते थ |’क्या तुम नीलू के घर काम
करोगी,पूछा कविता ने ?सुधा को जैसे अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ ‘क्या आप सच कह
रही हो ?’हां ‘सच ही कह रही हु ‘उसके यहाँ से जाने के बाद तुम बीमार रहने लगी हो |
तुमारा उसके प्रति प्यार देख कर लगता नहीं कि तुम उसके बिना जी पाओगी ‘तो मैंने ये
निर्णय लिया है | जैसे प्यासे को पानी मिलगया हो उसने जल्दी से हां बोल दी थी |
कविता ने अपने दामाद और नीलू से बात कि दामाद को कहा ‘बेटा सुधा एक
नेक और इमानदार इंसान है पच्चीस सालो से काम कर रही है नीलू को बेटी मानती है तुम
कहो तो इसे तुमरे घर भेज दू | नीलू और दामाद कि हां हुई और अब सुधा नीलू के घर
आगयी थी |नीलू का स्वभाव भी अपनी माँ कविता जैसा ही था सुधा नीलू के घर के काम को
अच्छी तरह से सँभालने लगी |
नीलू कि बचपन से ही आदत थी वो अपनी किसी भी चीज को ठीक से नहीं रखती
थी उसकी सुधा अम्मा ही ही ये सब करती थी
|यहाँ भी वो ऐसे ही करती थी अब यहाँ भी उसकी सुधा आगयी बिखरी हुई चीजों को करीने
से रखने के लिए | उसके पति को नीलू कि ये लापरवाई कतई पसंद नहीं थी अक्सर वो नीलू
पर इस बात के लिये नाराज होता था पर उसे कोई चिंता नहीं थी .उसे थो अपनी सुधा
अम्मा पर तब से भरोसा था .जब उसने अम्मा कि ऊँगली पकड़ कर चलना सीखा था तो लाजमी है
अविश्वास कि तो कोई बात ही नहीं थी |नीलू और उसका पति दोनों एक बड़ी कंपनी मे काम
करते थे | कंपनी का मेनेजमेंट वो ही देखते थे बहुत वयस्त रहते थे पर दो दिन अपने
मौज मस्ती के लिये निकाल ही लेते थे | और निकल जाते पिकनिक मनाने अपने |ऐसे ही वो
दोनों अपने किसी रिश्तेदार के घर शादी मे गये थे ,वापस आकर जल्दी से नीलू ने अपने
कीमती हीरे के गहने और कपडे ऐसे ही उतार कर पलंग पर रख दिये और खंडाला के लिये
निकल गये| वहां पहुँचते ही नीलू को अपने गहनों कि याद आई पर उसने कहा चिंता कि कोई
बात नहीं है ,सुधा अम्मा है न वो संभाल कर रख देगी .पर उसका पेटी बहुत नाराज हो
रहा था था |उसका मानना था कि इतने कीमती गहने और रुपया देख कर तो किसी का भी मन
डोल सकता है |पर नीलू निश्चिंत थी फिर भी उसका मन नहीं लग रहा था |बड़ी मुश्किल से
वो रात काटी |वापस आकर नीलू ने सबसे पहले अपनी माँ को फ़ोन किया साडी बात बतायी कविता
बोली ‘’अरे ‘’नीलू इतनी सी बात के लिये नाहक ही अपना प्रोग्राम छोड़ कर आई वो तेरी
‘सुधा अम्मा ‘’ है उसे तुमसे प्यार है ,गहनों से नहीं|’कोई ‘बात नहीं अब आगये हो
तो सम्भाललो अपने गहने ;जय से ही फ़ोन कट हुआ सुधा ने एक बैग उसके हाथ पर रखा और
कहा’’नीलू बेटा ये तुम्मारे गहने मेरे पास फ़ोन नंबर नहीं थे कैसे बताती पर मे रात
भर सो नहीं सकी थी |सुधा ने फ़ोन पर कि गयी नीलू कि बाते सुन ली थी ,वो तो गहने
देने ही कमरे मे आरही थी |नीलू ने अपने पति कि और देखा तिरछी नजर से और मन ही कहा
देखो मैंने कहा था न कि सुधा अम्मा सब संभाल लेगी ,उसके पति कि नजरे नीची हो गयी
|नीलू सुधा के गले लग गयी और तीनो जन खाना
खाने के बाद सोगये थे |
सुबह सुधा अम्मा के हाथ कि चाय नहीं मिलने पर वो उसके कमरे गयी तो
देखा वो वंहा नहीं थी,सुधा को घर मे ना पाकर नीलू रोने लगी पर उसका पति घर के
सामान को देख रहा था कि वो कुछ लेकर तो नहीं गयी इसी दौरान उसका लिका पत्र मिला
नीलू पड़ने लगी ‘’नीलू मे जा रही हूँ ,तुम्हारे पति को मुझ पर भरोसा नहीं और बिना भरोसा
मे कंही नहीं रहा सकती |और हां ‘’मै कविता मैडम ‘’के घर नहीं जा रही हूँ |
अब जिसे भी रखो संभाल के रखना जमाना खराब है और हाँ अपने गहनों को भी
......पढ़ कर नीलू रोने लगी अब तो उसके पति ने भी अपना सर पकड़ लिया और बोला ईमानदार
सुधा अम्मा को हमने शक करके खो दिया है |नीलू सोच रही है कि माँ को क्या जवाब
देगी| सुधा ने अब अपना बाकी का जीवन वापस अपने गाँव मे गुजारने के लिए सोचा
है
नीलू सोच रही है कि जिस सुधा माँ ने हमारे साथ सालो परिवार कि तरह
काटे आज अपने स्वाभिमान कि रक्षा के लिये एक झटके मे सब कुछ छोड़ कर वापस अपनी
दुनिया मे चली गयी है |
शान्ति पुरोहित
बहुत सुंदर और मान को छूती हुई कहानी ....कमाल की है बहुत ही अच्छी ..
जवाब देंहटाएंshukriya upasna
हटाएंसुन्दर कहानी शांति जी .......एक नयी शुरुआत ........बधाई ...:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अरुणा जी आगे भी उत्साह बढ़ाते रहना |
हटाएंईमानदार को फिर सज़ा मिली ...फिर से वही अकेलापन
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ ...कि क्या कहूँ
शुक्रिया अंजू ऐसे ही उत्साह वर्धन करते रहना |
हटाएंबहुत सुन्दर कहानी शांती जी ..बधाई
जवाब देंहटाएंआभार मीना पाठक जी
हटाएंwahhhhhhh..dil ko chu jaye aisi kahani..bahut hi achcha likhte hai aap shantiji.. likhte rahiye...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीताजी ऐसे ही उत्साह वर्धन करते रहना |
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