मनमोहन कसाना
अबकी बार हम ले चलते
हैं आपको प्राचीन समय से लघुकाशी के नाम से प्रसिद्व वैर कस्बे की ऐसी जगहों पर
जिको देख कर आप स्वंय कह उठोगे ’’अजब वैर के गजब अजूबे ‘’
अबकी बार हमारी टीम
गई वैर से 6 किलोमीटर दूर नहरपुर के पहाडों में स्थित प्राचीन गुफाओं को देखने और
वहां देखने के बाद वापस आने तक टीम दो भागों में बंट गई कारण हम बतायेंगें अभी तो
फिलहाल
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बादाम का पेड |
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रंग बदलता पहाड |
चलते हैं पहाडों की
और मैन रोड से कच्चे रास्ते पर जैसे ही अमरेन्द्र ने गाडी घुमाई तो हमारी टीम
के सबसे बरिष्ट सदस्य श्री किशोर पंडा जी ने कहा देख लो कहीं बगल में खडी कर
देते हैं अटक न जाये कहीं , पंडा जी समाजिक कार्यकर्ता हैं लेकिन अमरेन्द्र की
कुशलता से ठिकाने पर पहुंचा दीये वहां जाते ही नहरपुर वासी एक गुर्जर का बाग मिल
गया जिसमें अपेक्षा से कहीं ज्यादा बादाम और सेव के पेड जिनमें फल भी लग रहे थे
के कई सारे पेड देख कर एक बार तो दिल्ली निवासी डॉ ताहिर अली जो कि देहली के रहने
वाले हैं (लेकिन आजकल वैर के इतिहास और रहस्यमयी जगहों के चक्कर हमारे साथ काट
रहें हैं ) चौंक ही गये और बोल उठे वाकई गजब है वैर की धरती भी कभी रांगेय राघव तो
कभी मनोहर दास और तो और अब तो बेर से उठकर बादाम पैदा करने लगी । आगे चलकर देखा तो
गुफा को देखकर आगे बढे तो रंग बदलते पहाड को देखा तो उसके बारे में हमारे साथी और
भूगोल के प्रो पी एस पुष्प ने कहा कि ये सम्भवतया पहाडी में गंधक अथार्त आण्विक
तत्व की वजह से होना बताया थोडा और आगे
बढे तो एक लगभग 30 फुट लम्बी सांप की कांचरी मिली जो शायद किंग कोबरा की हो सकती
है लेकिन पहाड में बनी गुफाओं में बनी नाग और नागिन की मूर्तीयों
के कारण कुछ और ही बयां करती है खैर जो भी हो लेकिन है गजब ।
फिर थकान के कारण
वापसी का सोचा तो वापसी में वहीं रहने वाले श्री श्री 108 श्री बाबा संजय गिरी
महाराज मिल गये तो उनसे बात करके लगा कि आज भी वो साधुवाद जिन्दा है जिसका जिक्र
हम अक्सर ग्रन्थों में पढते हैं फिर बाबा ने गुफा में बनी प्राक़तिक प्रतिमाऐं व
गाय का खेाज अन्य वो चिज दिखाई जिनको देख कर हम सभी खुद को वैर का रहने वाले कहने
पर भी सकुचाने लगे क्योंकि इतने दिनों हम ने वह सब क्यों नहीं देखा चलो यह सब
देखने के बाद हम फिर वापस आ गये और आगे की योजना में अभी लगे हैं
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