मेरी भव बाधा हरोः कहानीः विजय सिंह मीणा

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विजय सिंह मीणा
पच्चीस वर्षीय घीसी के पति का देहांत पिछली साल ही हुआ था । घीसी ने इस छोटी सी उम्र में ही दुनियां के सभी  दुख देख लिए थे । पति की मौत के बाद तो मानो सारा गांव  उसका दुश्मन बन गया था । देवर मलखान की उसपर शुरु से ही कुदृष्टि थी मगर घीसी ने अब तक अपने दामन पर कोई दाग नहीं लगने दिया था ।
घीसी का चार साल का बेटा बृजेश था । उसी के लिए घीसी जिंदा थी  वरना ऐसे असहनीय कष्टों के पलस्वरूप मे कोई और औरत  तो कब की संसार छोड़ जाती । उसके पति ने तीन साल पहले एक कुत्ता पाला था जिसका नाम गबरु था । सही मायने में एक कुत्ता नहीं बल्कि इस घर का अभिन्न अंग था । घीसी जहां भी जाती गबरु उसका अंगरक्षक बनकर साथ ही जाता । कई बार गांव के मनचलों ने घीसी की आबरु लूटने का प्रयास किया लेकिन गबरु ने सबको धूल चटा दी। उसके पास ले देकर एक खेत था जो गांव के ही नजदीक था और उसके परिवार के भरण पोषण का एकमात्र साधन था । मलखान ने कई बार उस खेत पर कब्जा करने का असफल प्रयास किया  परन्तु घीसी की हिम्मत और बहादुरी  के आगे उसे मुंह की खानी पड़ी, इस कारण जिससे  मलखान उससे बदला लेने की फिराक में था ।
एक दिन घीसी के भाई शिवचरण ने उसे कहा – ‘’तू यहां इतने दिन से  दुख पा रही है । मुझसे यह देखा नहीं जाता । तू मेरे साथ गांव चल । मै इतना समर्थ हूं कि तुझे जिन्दगी भर कोई दुख नहीं मिलेगा । वहां बृजेश की पढाई ढंग से हो जाएगी ।‘’ शिवचरण ने अपना थैला घीसी को देते हुए कहा ।
‘’ नहीं भाई, मैं यहीं ठीक हूं । जो मेरे भाग्य में लिखा है उसे तो भोगना ही पड़ेगा ।‘’ कहकर घीसी चाय बनाने चली गई ।
घीसी चाय बनाकर शिवचरण के पास बैठ गई । उसने पीहर  का हाल चाल पूछा । शिवचरण ने कहा  मॉं बहुत चिंतित रहती हैं । हमेशा तेरे बारे में बात करती है । उसी ने मुझे यहां तुम्‍हें लिवाने के लिए भेजा है । कहकर शिवचरण चाय पीने लगा ।  नहीं भाई, मेरा दुख-दर्द अब मेरा है । मैं किसी को परेशान नहीं करना चाहती । अब तो मेरे दुख और भव बाधा को ईश्‍वर के अलावा कोई नहीं मिटा सकता । तुम मॉं  को समझा देना । मैं इतनी समर्थ हूं कि बृजेश का पालन-पोषण कर सकती हूं। कहकर घीसी चाय के खाली बर्तनों को उठाने लगी । घीसी एक बहुत ही दिलेर और हिम्‍मतवाली औरत थी । वह सहज ही छोटी-मोटी परेशानियों से घबराने वाली नहीं थी । उसने शिवचरण को समझा-बुझा कर वापस भेज दिया।
      इस साल उसके खेत में भी जोरों की फसल थी । पूरे साल भर उसने जी-जान लगाकर मेहनत की थी । वह सोच रही थी कि इस साल से बृजेश को भी गांव के स्‍कूल में दाखिला दिला दूंगी । घीसी खेतों की स्‍वयं रखवाली करती । वहीं गबरू के साथ बृजेश भी खेलता रहता । वह हमेशा खेत पर ढोक-ढंकर को भगाने के लिए एक मजबूत लाठी भी हाथ में रखती थी ।
      पूरे गांव में उसका कोई हमदर्द था तो वह थी उसकी पड़ोसन विधवा  सम्‍पो   काकी । सम्‍पो काकी उसके पास बैठकर उसका दुख दर्द बांट लेती थी । जब घीसी खेत पर काम करने जाती तो घर की रखवाली के लिए वह सम्‍पो काकी को ही बोलकर जाती थी । सम्‍पो काकी गांव की ऐसी वृद्ध महिला थी जो सत्‍य बोलने में किसी से भी नहीं ड़रती थी । उसका  इकलौता लड़का शहर में सरकारी नौकरी करता था । वह हर महिने आकर पूरे महिने का राशन-पानी और जरूरत की सारी चीजें रख जाता था ।
      एक रोज शाम के आठ बजे मलखान आया और घीसी से बोला - देख घीसी, अब बृजेश भी बड़ा हो रहा है । तू अकेली इसको नहीं पाल सकती । मैं कहता हूं मेरी बात मान ले । तू मुझसे नाता करले । कहकर मलखान वहीं पड़ी खाट पर बैठ गया ।
घीसी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप चूल्‍हे पर रोटी बनाती रही । बृजेश बाहर खेल रहा था और गबरू मिट्टी के बर्तन में रखी दूध-रबड़ी खा रहा था । जब मलखान ने दो-तीन बार अपने मंसूबे उसे बताए और घीसी ने कोई जवाब नहीं दिया तो मलखान ने उसकी मौन स्‍वीकृति मान ली । वह खाट से उठा और रोटी बनाती घीसी का हाथ जा पकड़ा । घीसी ने फूंकनी उठाकर उसके सिंर पर दे मारी और कहने लगी-हरामजादे, अपनी खैरियत चाहता है तो यहां से भाग जा, नहीं तो हाथ-पैर तोड़कर ही भेजूंगी । घीसी का चेहरा गुस्‍से से तमतमा रहा था । गबरू  खाना छोड़ जोर-जोर से गुर्राने लगा । इतने में काकी उधर आ गई । यह सब देखकर मलखान वहां से भाग गया ।
      वह सीधे अपने दोस्‍त धनपत के पास गया । दोनों उसी विषय पर चर्चा करने लगे ।इसको सबक सिखाना जरूरी है । आज जो मेरी बेइज्‍जती हुई है अब उसका बदला लेना जरूरी हो गया है । मलखान ने तमतमाते हुए धनपत से कहा । तू क्‍या कर लेगा ? वह ठहरी औरत जात, कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं । तुझे तो पता ही है कि वह किसी से नहीं ड़रती । चाल-चलन की भी पक्‍की है । दो आदमियों को तो वह अकेली धरती चटवा देगी । मैं तो कल उसकी ताकत को  देखकर दंग रह गया । ढाई मन की बोरी उसने अकेले ही उठाकर बैलगाड़ी में रख दी । कहकर धनपत चुप हो गया । तो क्‍या मैं हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाऊं । भाई के मरने के बाद  उस पर मेरा पूरा हक है । मेरी भी अब कौन शादी करने वाला है ? इसीलिए हाथ पैर मार रहा हूं । लेकिन ये छिनाल इतनी आसानी से नहीं मानेगी । कहकर मलखान हताशावश अपनी छाती पर मुक्‍के मारने लगा । थोड़ी देर सन्‍नाटा छाया रहा फिर धनपत ने योजना उसके कान से मुंह सटाकर बताई तो मलखान के चेहरे पर खुशी के भाव आने लगे ।
ठीक है, फिर मैं कल ही इस काम को अंजाम दे दूंगा । कल जब वह खेतों पर काम करने जाएगी उसके बाद ही मैं यह सब कर दूंगा ।मलखान ने बीड़ी सुलगाकर धनपत को पकड़ाते हुए कहा । कल शीतलाष्‍टमी है । सभी गांव वाले इसके पूजन के लिए शाम को ही पकवान बना लेते हैं  और प्रात:काल जाकर शीतलाष्‍टमी को चढ़ाते हैं । अगले दिन तड़के  ही गांव में पूजन की गहमा-गहमी थी । सभी लोग गांव से दूर पहाड़ के नीचे बने शीतलाष्‍टमी के मंदिर की तरफ जा रहे थे । घीसी ने भी आज जल्‍दी घर का काम काज खत्‍म किया और पूजन के लिए निकल पड़ी । चलते हुए उसने सम्‍पो काकी से कहा-काकी, मैं पूजा करने जा रही हूं और वहीं से सीधी खेत पर निकलूंगी । जरा घर का ध्‍यान रखना । बृजेश भी यहीं खेल रहा है । ठीक है घीसी, मैं पूरा ध्‍यान रखूंगी । तुम आराम से जाओ । सुनकर घीसी मंदिर की ओर चल दी । गांव के अधिकतर लोग पूजा के लिए चले गये थे सो गांव लगभग खाली थी ।
मलखान अपने दोस्‍त धनपत के साथ घीसी के घर के इर्द-गिर्द मंड़राने लगा । उसने देखा कि बृजेश घर के अंदर ही खेल रहा है । उसने धनपत को अंदर भेजा । बृजेश धनपत को नहीं पहचानता था । धनपत ने अंदर जाकर बृजेश से कहा-बेटे जाते समय तुम्‍हारी मां यह एक रूपया तुम्‍हें देने के लिए कहकर गई थी । जाओ दुकान से लेकर कुछ  खा लेना । रूपया हाथ में आते ही बृजेश खुश हो गया और भागकर दुकान की तरफ चला गया । अब घर में कोई नहीं था सो मौका पाकर मलखान अंदर आ गया और माचिस की तिल्‍ली से उसने घीसी के घर की छान में आग लगा दी । आग थोड़ी फैलने वाली ही थी कि सम्‍पो काकी उसी समय वहां आ  गई । वह आते ही जोर-शोर से मलखान को गालियां देने लगी और पानी की मटकी उठाकर उसमें छान पर डाल दी । आग ज्‍यादा नहीं फैली थी सो  मटकी का पानी डालते ही ठंडी हो गई। मलखान और धनपत काकी को देखकर भाग गये । धीरे-धीरे काकी ने  यह समाचार पूरे गांव में फैला दिया और  घीसी के आग्रह पर शाम को गांव वालों को इकट्ठा किया गया । हालांकि गांव के पंच घीसी के पक्ष में नहीं थे । परन्‍तु सम्‍पो काकी ने सारा माजरा अपनी आंखों से देखा था,  अत: उन्‍होंने पांच सौ रूपये का मामूली दंड़ मलखान पर  लगा दिया । घीसी इस फैसले से संतुष्‍ट नहीं थी ।  उसने वहीं कह दिया कि वह इस मामले को लेकर  थाने में रिपोर्ट करेगी ।  इस दबाव में आकर पंचों ने घीसी को समझाया -पुलिस कचहरी  में कुछ नहीं रखा है । ये बता, तू क्‍या चाहती है ?
पंचों  ये  अनहोनी तो सम्‍पो काकी की वजह से टल गई नहीं तो मेरा परिवार तो कहीं का नहीं रहता  । इसे कड़ा से कड़ा दंड़ दो ताकि आगे ये ऐसा करने से पहले दस बार सोचे ।
घीसी ने हाथ जोड़कर  कहा ।
थोड़ी देर पंचों में खुसर-पुसर होती रही और आखिर में उन्‍होंने फैसला बदला -
इसका एक महिने तक हुक्‍का–पानी बंद  किया  जाता है और इसे दंड़ स्‍वरूप दो हजार रूपये  घीसी को भी देने पड़ेगे । घीसी ने भी फैसला मान लिया और अपने घर चली गई ।
मलखान कसमसा रहा था । अपमान का दंश उसे खाये जा रहा था । मगर अब वह बेबस था । फैसले को मानने के सिवाय कोई विकल्‍प नहीं था ।  वह सिर झुकाये वहीं बैठा रहा। उसका दिल अंदर से भभक रहा था, परन्‍तु अब उसका  दांव उसके ऊपर ही उल्‍टा पड़ गया   था ।  
उसे दो हजार के दंड़ से ज्‍यादा चोट बिरादरी से हुक्‍का–पानी बंद होने की लगी । उसने मन मसोस कर  दो हजार रूपये पंचों के सुपुर्द कर दिए और घायल जानवर की भांति वहां से अपने घर चला गया ।
अब घीसी भी ज्‍यादा सतर्क रहने लगी क्‍योंकि उसे  भान था कि मलखान दुष्‍ट प्रवृत्ति का आदमी है सो वह बदला लेने की नीयत से उसे नुकसान पहंचाने की कोशिश जरूर करेगा । अब वह खेत पर भी जाती तो बृजेश को भी साथ ही रखती थी । वह सोचती थी कि ऐसे व्‍यक्‍त‍ि का कोई भरोसा नहीं वह बृजेश की जान के साथ भी खिलवाड़ कर सकता है ।
चैत्र माह के आखिरी दिन चल रहे थे । फसल पककर पूरी तरह थी । उसकी कटाई का काम खेतों में चल रहा था । घीसी ने भी गेहूं की फसल कटवाकर अपने खेत में बने खलिहान में डाल दी । दो-तीन दिन बाद जब गेहूं पूरी तरह सूख गये तो उसने टेक्‍टर से कुटवा दिया । तैयार गेहूं उसने बोरियों में भरकर यहीं रखवा दिये और भूसे को उसने खलिहान से ही बेचने का फैसला किया ।खलिहान में गेहूं की दस बोरी रखी थी सो रखवाली के लिए उसे आज खलिहान में ही सोना था । बृजेश आज उसने सम्‍पो काकी के घर छोड़ दिया था और गबरू को उसने खलिहान में अपने साथ रखा ।
पूर्णिमा की धवल चांदनी खेतों और खलिहानों पर दूर-दूर तक विस्‍तीर्ण थी । चैत्र माह में रात्रि सुहावनी लगती है क्‍योंकि दिन की गर्मी के बाद रात को ही शीतलता का आभास  होता है। घीसी  ने अपना बिस्‍तर बोरियों के पास ही लगा लिया और गबरू थोड़ी ही दूरी पर बैठ गया । गबरू इतना सचेष्‍ठ था कि हवा की भी सरसराहट होती तो वह सचेत हो चारों ओर का मुआवना लेने लगता था ।
रात्रि का दूसरा प्रहर लगभग समाप्‍त हो चुका थ। दिन भर की थकी-हारी घीसी भी नींद के आगोश में समा चुकी थी परंतु गबरू अभी भी चारों तरफ चहल-कदमी करता और फिर  पुन: अपने स्‍थान पर आकर सुस्‍ता लेता ।
सुबह के चार बजे के आस-पास मलखान दबे पांव वहां आया और अनाज की बोरी से अनाज चुराने लगा । उसने बोरी में हाथ ही डाला था कि गबरू ने अचानक उस पर धावा बोल दिया । इससे घीसी की भी नींद टूट गई और वह पास रखी लाठी हाथ में लेकर मलखान पर पिल पड़ी ।गबरू ने मलखान को लहू-लुहान कर दिया था और ऊपर से घीसी की लाठियों के वार से वह घबरा गया ।
    घीसी, मुझे माफ कर दो, आज के बाद ऐसी गलती नहीं करूंगा । घीसी ने गबरू को हटाया और उसे फटकारने लगी -  जो आदमी एक बार नहीं कई बार औरतों से पिट चुका हो वह नामर्द ही तो है । इतने पर भी भगवान ने तुझे सद्बुद्धि नहीं दी । कहकर घीसी ने फिर लाठी उसकी तरफ घुमाई ।
नहीं घीसी, इस बार माफ कर दे । कहकर वह हाथ-पैरों को सहलाता हुआ खड़ा हो गया।  तुझे आखिरी मौका दे रही हूं । अगली बार मुझसे भिड़ने की कोशिश की तो मैं भूल जाऊंगी कि मैंने आदमी को मारा था किसी जिनावर को । कहते-कहते घीसी ने एक लाठी उसकी पीठ पर मारी और उसे वहां से भगा दिया ।
 सुबह-सुबह घीसी फैले हुए गेहूं को साफ कर बोरी में भर रही थी, तभी गांव के पंच नाथू का लड़का शिब्‍बू वहां भाया और कहने लगा –
घीसी काकी, गांव में मलखान ने पंचायत बुलाई है । पंचों ने तुम्‍हें वहीं बुलाया है ।
कहकर शिब्‍बू वापस आ गया । उसके पीछे-पीछे ही घीसी भी पंचायत में आ गई । मलखान पहले से ही अपने हाथ-पैरों पर पट्टियां बंधवाकर वहां बैठा था ।
नाथू पंच के खेत घीसी के बगल में ही थे । उसने कई बार घीसी से कहा था कि वह अपना यह खेत मुझे दे दे । मेरे सारे खेत एक जगह हो जाएंगे और बदले में मेरा पहाड़ की तलहटी वाला खेत ले ले । घीसी ने उसे मना कर दिया था क्‍योंकि पहाड़ की तलहटी में पानी के अभाव में केवल खरीफ की ही एक फसल होती थी । इससे नाथू  भी खार खाये बैठा  था । परन्‍तु वह उचित मौके की तलाश में था । आज वह कुछ इसी तरह का ताना-बाना बुन रहा था।
सारा गांव एकत्रित हो चुका था । सबसे पहले नाथू ने मलखान से पूछा- क्‍यों रे मलखान, क्‍या बात हो गई ? सुनकर मलखान खड़ा हो गया, अपने हाथ-पैरों की पट्टियों पर उसने सरसरी नजर डाली और एक-दो पट्टी जो ठीली हो गई थी, उन्‍हें ठीक कर कहने लगा –
भाईयो, निर्दोष आदमियों  पर कुत्‍ते छोड़े जा रहे हैं, ऐसे गांव में रहने से तो मरना ही बेहतर है ।
कहकर मलखान फफक-फफक रोने लगा और अपने हाथ में बंधी पट्टियों से घडि़याली आंसू पौंछने लगा । गांव के ही धुंधी पटैल ने कहा- सीधा-सीधा बक क्‍या मामला है ? ये औरतों की तरह क्‍या फैल-बाजी रच रहा है? “ 
काका आज तड़के मैं अपने खलिहान की देखभाल और शौचादि के लिए जा रहा था । आपको तो पता ही है कि मेरे रास्‍ते में घीसी का खलिहान भी पड़ता है । मैं वहां से गुजर ही रहा था कि अचानक इसने मुझ पर अपना कुत्‍ता गबरू छोड़ दिया और खुद भी मुझे लाठियों से मारने लगी । मैं चाहता तो दस-पांच लाठी इसको भी जमा देता, लेकिन आखिर है तो ये मेरी भाभी ही । मैंने इससे काफी मिन्‍नत की, लेकिन ये कहती रही कि जब तक तुझे इस गांव से बेदखल नहीं कर दूंगी इसी तरह तेरी गति करती रहूंगी ।
कहते-कहते मलखान दहाड़ मारकर रोने लगा ।धुधी पटैल ने घीसी से पूछा -क्‍यों री घीसी, ये कह रहा है, इसमें क्‍या सच्‍चाई है ? “
पंचों, ये सरासर झूठ बोल रहा है । आपको तो पता ही है कि यदि सम्‍पो काकी समय पर ना पहूंचती पिछले दिनों इसने मेरा सारा घर-बार जलाकर खाक कर दिया होता । घीसी ने अपना घूंघट ठीक करते हुए कहा ।
तो फिर इसे ये चोट कैसे लगी ? “ इस बार नाथू बोला ।
ये सुबह-सुबह मेरे खलिहान से अनाज चुरा रहा था तभी गबरू ने इस पर हमला किया । इसने वही मुझसे माफी भी मांगी कि दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी । बस यही सच बात है पंचो। कहकर घीसी अपनी जगह बैठ गई ।
सुनते ही मलखान खड़ा हो गया-पंचो, ये सब इसकी बनावटी बातें हैं । मैं क्‍यों इसके अनाज की चोरी करूंगा ? मेरे कौन से छोरी-छोरे भूखे मर रहे हैं । मेरे अकेले पेट के लिए तो मेरे ही खेतों में इतना अनाज हो जाता है ।
इतना सुनते ही सम्‍पो काकी भड़क उठी । वह खड़ी हुई और अपने हाथ के डंड़े को जोर-जोर  से जमीन में मारकर कहने लगी -  ‘’अरे हरामी के पूत, तू तो क्‍या, तू  मरकर तेरी आत्‍मा भी हम सबके सामने आकर ये बात कहे तो भी कोई सच ना मानें । छोरा धुंधी, मेरी माने तो इसे इस गांव से ही निकाल दो । जो औरत की इज्‍जत ना करे, वो नामर्द है । गांव को ऐसे नामर्दों की बस्‍ती बनाना हो तो इस बस्‍ती को तुम्‍हारे जैसे पंचों की कोई जरूरत नहीं है । कहते-कहते सम्‍पो काकी का चेहरा गुस्‍से से तमतमा गया । काकी के गुस्से को सभी पंच-पटैल भी जानते थे । सो नाथू ने बात संभाली – काकी, पिछली बार जब मलखान ने गलती की थी तो हम सभी ने उसको उसके किए का दण्‍ड दिया था । उस फैसले को घीसी ने भी माना था । तुम खुद उसमें गवाह थी । बताओ क्‍या पंचायत गलत फैसला लेगी ?   अभी तुम आराम से बैठो, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा । सुनते ही सम्‍पो काकी बैठ गई और बड़बड़ाने लगी -ये निपूते करेंगे दूध का दूध ।
थोड़ी देर के लिए पंचायत में सन्‍नाटा छा गया । सभी गांव वाले और पंच सम्‍पो काकी के गुस्‍से से ड़र गये थे । इसके पीछे एक कारण था कि पूरे गांव से एक मात्र सम्‍पो काकी का बेटा विजय ही सरकारी नौकरी में  था । उसे कानून की पूरी समझ थी । ऊपर से सम्‍पो काकी का बेटा गृह मंत्रालय में तैनात था । गांव वालो को किसी ने बता दिया  था कि पूरे देश की पुलिस फोर्स गृह मंत्रालय के अधीन है । इसी बात का विचार कर पंच-पटैल सम्‍पो काकी से ऑंख मिलने की हिम्‍मत नहीं करते थे । इस बात का सम्‍पो काकी को लेशमात्र  भी भान नहीं था । वह तो अपनी जन्‍मजात आदत कि सही बात को कहना है तो कहना है के कारण ही बोल रही थी । चाहे कितने भी झंझट क्‍यों ना झेलने पड़े ।
धुंधी पटैल भी  सम्‍पो काकी की बड़बड़ाहट से अंजान नहीं था । उसने सारी बात   संभाली ।
काकी ने सही बात कही है, लेकिन आज का मामला अलग है । काकी हम तुम्‍हें विश्‍वास दिलाते हैं जो सारा गांव मंजूर करेगा वही फैसला होगा । किसी के साथ कोई अन्‍याय नहीं होगा । कहकर धुंधी हुक्‍का गुड़गुड़ाने लगा ।
जब बात आई गई होने लगी तो  मलखान भी घबराने लगा ।वह लोकतंत्र के वर्तमान नेताओं की तरह सम्पो काकी के पैरों में जा पडा और कहने लगा – ‘’ पंचो,  अब गांव की बुजुर्ग सम्पो काकी को ही मेरे उपर विश्वास नहीं रहा तो जो घीसी  ने कहा है उसे ही सच मान लो। मैं अपनी इहलीला यहीं सबके सामने समाप्त कर लेता हूं । मुझे कौन रोने बैठा है ?’’ कहकर मलखान  दहाड़ मारकर सम्पो काकी के आगे रोने लगा ।
‘’ हट गैबी, चिरोडू का मूत । यहां क्यों रो रहा है । रोना हो तो अपने कर्मों को रो। कहकर सम्पो काकी अपने घर की ओर चली गई  । उसके बाद पंचायत भी निश्चिंत हो गई । अब पंचायत की असली कार्रवाई शुरु हुई । सबसे पहले नाथू ने इस अवसर का फायदा उठाया ।
‘’ हां घीसी, हम सब पंच तेरे साथ हैं। बता इस बात का कोई गवाह है तेरे पास कि मलखान तेरे खलिहान से गेंहू चुरा रहा था ।‘’ कहकर नाथू ने एक नजर एकत्रित गांव वालों पर डाली ।
‘’ वहां मेरे और गबरु के अलावा कोई नहीं था ।‘’ घीसी ने कहा । कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था । उसने धुंधी से भी पूछा कि कोई गवाह हो तो बताओ परंतु सभी मौन थे । पंचायत ने एक तरफा फैसला सुना दिया ।
‘’ सारे हालात के देखते हुए , ये पंचायत इस नतीजे  पर पहुंची है कि घीसी ने पुरानी बातों का बदला लेने के लिए मलखान को घायल किया है । इसमें इसकी  जान भी जा सकती थी। लेकिन ये इसके कोई अच्छे कर्म का फल था कि मलखान की जान बच गई । अब ये पंचायत  हुक्म सुनाती है कि घीसी का खेत बिल्कुल गांव के  पास है सो हो सकता है ऐसा हादसा किसी और के साथ भी हो जाए सो  इसका ये खेत अब मेरे तलहटी वाले खेत से बदला किया जायेगा और साथ ही घीसी को ये भी हुक्म दिया जाता है कि तीन दिन के भीतर गबरू को या तो ये खुद  कहीं गांव बाहर छोड़ आये  नहीं तो  पंचायत  मलखान को आदेश देती है कि वह तीन दिन बाद इस कुत्ते को मार दे ।‘’ कहकर नाथू ने पंचायत बर्खास्त कर दी ।
गबरु के मारने की बात सुनते ही घीसी का मन कांप उठा । वह वहीं पंचायत के सामने ही चीखने लगी – ‘’ यदि इस पंचायत  को गबरू को मारना ही है तो पहले उसे मेरी लाश से गुजरना होगा ।‘’ घीसी ने कहा और अपने घर की ओर दौड़ पडी ।
इस फैसले को सुनकर मलखान इतना खुश था मानों  उसे कोई कुबेर का खजाना मिल गया हो । घीसी पहले सीधे अपने घर गई ,  घर को ताला लगाया । सम्पो काकी को सारा वाकया बताया और बृजेश व गबरु  को लेकर सीधे  अपने खलिहान पर चली गई  । सम्पो काकी  तुरंत उठी  और घीसी के घर के बाहर पडी खाट पर जा लेटी ।
घीसी को यह आभास हो चुका था कि  अब गबरु की जान खतरे में है । उसने गबरु को दो- तीन बार चूमा  और मन ही मन कहा- ‘’बेटा गबरु, तू चिंता मत कर , तेरी जान से पहले मैं अपनी जान कुर्बान कर दूंगी ।‘’ गबरु भी पता नहीं आज ज्यादा ही कूं- कूं कर रहा था । घीसी ने उसे उसका पसंदीदा भोजन दूध – राबडी दिया मगर मजाल कि गबरु उसको सूंघ भी लेता ।
बार- बार घीसी  गबरू की गर्दन पकड़ कर दूध-राबडी खिलाने का भरसक प्रयास करती परंतु गबरु  हर बार कूं- कूं  करके उसकी गिरफ्त से छूटकर दूर जाकर पूरा मुंह खोलकर जोर जोर से चिल्लाता । घीसी को समझ  नहीं आ रहा था । उसने एक बार जोर से गबरु को डांटा – ‘’ तू मरले , जब तक तू नहीं खाता, मैं भी नहीं खाती ।‘’  सुनकर गबरु  और जोर जोर से कूं कूं करने लगा और बृजेश के पास जाकर निरीह आंखो से अश्रु बहाने  लगा । शायद  उसे कोई अनहोनी का पूर्वाभास  हो रहा था ।
आखिर संवेदना  चाहे जानवर की हो या इंसान  की , उसका सीधा संकेत ह्रदय को कचोट देता है । घीसी को भी को भी खाना देखकर उबाकी आने लगी और गबरु के गले को  अपनी बांहों में लेकर  सुबकियां लेने लगी । अनमने मन से उसने बृजेश  को खाना खिलाया और काम मे लग गयी। आज उसे  सारा अनाज बैलगाडी  मे लदवाकर घर भी पहुंचाना है । उसके खलिहान से थोडी ही दूरी पर जगदीश का खलिहान था . उसके पास बैलगाडी थी । उसने जगदीश  से बैलगाडी  के लिए कहा तो उसने  हां कह दी । बैलगाडी  लेकर जगदीश खलिहान में पहुंच  गया .।  उसमें सारी बोरियां लदवाई  और घीसी अनाज को अपने घर ले आई । अब खलिहान मे केवल भूसा बचा था , जिसकी रखवाली के लिए वह वापस  खलिहान में आ गई । जब तक भूसा नहीं बिकेगा  उसे रखवाली तो करनी ही पड़ेगी ।
तीसरे दिन तक भूसा नहीं बिका था  सो घीसी अपने खलिहान पर ही थी । घर तो केवल वह खाना बनाने के लिए आती थी , जब तक गबरु  वहां रखवाली करता था ।
आज सुबह ही घीसी ने  पडौस के गांव  के मोती  को भूसा उठाने  का समाचार  भिजवा दिया था सो वह अपनी गाडी लेकर खलिहान में पहुंच गया था । मोल- भाव  हुआ और मोती ने भूसा खरीदकर अपनी  गाडी  में लदवा लिया । आज घीसी खलिहान के काम से मुक्त हो गई थी । उसने  पास के कुंए पर जाकर  हाथ – मुंह धोये  और बृजेश  और गबरु के साथ अपने घर आ गई ।
शाम के पांच बज रहे थे । घीसी अपने चूल्हे पर घाट की राबडी बना रही थी । इतने में ही उसके दरवाजे के बाहर मलखान, धनपत  और गांव  का ही कैलाशी  लाठी  और गंडासा  लेकर आ धमके । सबसे पहले मलखान ने दरवाजे पर जाकर लाठी खड़खडाई और चेतावनी देने लगा ।
‘’ तुम्हें पंचायत का भी कोई भय नहीं रहा । तुझसे कहा था कि गबरु को गांव बाहर छोड़ आना । अब तेरी भलाई इसी में है  कि गबरु को हमारे हवाले कर दे ।‘’ सुनते ही गबरु के कान खड़े हो गए और वह सतर्क हो घीसी की तरफ  देखने लगा । घीसी तत्काल उठी  और घर में से  लाठी निकाल कर पौडी मे आकर खडी हो गई । उसने अपनी लूगडी को सिर पर  कफन की तरह बांध लिया । घीसी ने भी चेतावनी भरे लहजे में कहा- ‘’ गबरु से पहले  यहां कई लाश गिरेंगी ।‘’ कहते – कहते  घीसी की आंखो  मे अंगारे दहकने लगे । लाठी संभालते हुए  वह पौडी के दरवाजे के पास  आ खडी हुई । दरवाजे  के सामने मलखान खडा था बाकी दोनो आदमी दीवार की आड़ में खड़े थे जो घीसी को दिखाई नहीं दिये ।
‘’ तो तू राजी से नहीं मानेगी । लतों के भूत बातों से नहीं मानते ।‘’ कहते हुए मलखान ने पौडी में घुसने का प्रयास किया । घीसी ने लाठी का एक जोरदार  प्रहार किया । मलखान के बांये कंधे  पर लाठी पडी ।  वह दर्द से बिलबिला उठा  और दरवाजे के बाहर औंधा जा गिरा । यह देखकर धनपत ने मोर्चा संभाला  और उसने घीसी पर प्रहार  किया ।  घीसी वार बचा गई और पूरी ताकत से धनपत को लाठी  मारी। लाठी  इस बार धनपत  की कमर पर लगी लेकिन दरवाजे के किवाड़ के अवरोध के कारण लाठी का भरपूर वार नहीं हो सका । संभलकर धनपत ने घीसी को  फिर लाठी मारी  जो उसकी दांई जांघ मे लगी । इतना देखते ही गबरु से नही रुका गया । वह शेर की  तरह धनपत पर टूट पडा ।  पहले ही वार में गबरु ने  मांस का एक बडा सा लोथडा धनपत की जांघ से निकाल फेंका । इतने में ही घीसी संभली और उसने तडातड़ लाठियां बरसानी शुरु कर दी । धनपत घबडा कर दरवाजे के बाहर की तरफ भागा । गबरु भी हमला करता हुआ उसके पीछे-पीछे  दरवाजे की बाहर  गिराडा में आ गया ।
गबरु की जान बचाने की खातिर घीसी को अब पौडी से बाहर निकलना ही पडा । जैसे ही घीसी बाहर निकली तो कैलाशी ने उस पर गंडासे वार  किया जिसे घीसी ने अपनी लाठी पर झेला और पलटकर उसने लाठी का एक जोरदार प्रहार कैलाशी पर कर दिया । कैलाशी का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर पडा । गबरु पूरी ताकत से धनपत से भिड़ रहा था । मलखान फिर संभला और उसने पीछे से घीसी के सिर पर वार कर दिया ।  सिर के पिछले हिस्से मे चोट लगी और घीसी के सिर से खून की तेज धार बह निकली । इसके बाद तो मानों घीसी ने चंडी का  रुप धारण कर लिया । वह पूरे वेग से मलखान  पर पिल पडी । उसने अनगिनत  लाठियां  मलखान पर बरसाई  जिससे  उसका सिर कई जगह से फट गया । उसकी आंखे चौंधिया गई  और बेहोश हो धराशायी हो गया । घीसी पलटी और गबरु के पास जा पहुंची जो बेतहाशा  उछल- उछल कर  धनपत को लहूलुहान कर रहा था । घीसी ने लाठी  का एक अचूक वार धनपत की टांग  पर किया जो उसके टखने  पर लगा ।टखना  टूट कर चूर-चूर  हो गया । दूसरा प्रहार उसने धनपत के सिर पर किया जिससे  उसका ललाट फट  गया । गबरु  जोर जोर से भौंक रहा था ।  पीछे पड़े कैलाशी  को होश आया और उसने उठकर  गंडासी का एक जोरदार प्रहार गबरु की गर्दन पर कर दिया जिससे उसकी स्वांस नली कट गई । एक जोरदार चीख के साथ ही गबरु  जमीन  पर गिरकर तड़पने लगा ।  जैसे ही घीसी ने गबरु की गर्दन से बहती रक्त की अविरल धार देखी तो उसने जोरदार दहाड़ मारी और कैलाशी पर लाठियों की बौछार  कर दी ।  कैलाशी  का पहले ही काफी रक्त निकल चुका था सो वह इस हमले को सहन नहीं कर सका । चारों ओर  गिराड़े में खून ही खून दिखाई दे रहा था ।थोडी देर तड़पने के बाद उसके प्राण- पखेरु उड़ गये । घीसी लाठी फेंककर  गबरु के पास आई और उसे अपनी गोद मे उठाने का प्रयास करने लगी । गबरु की गर्दन से निकलती  हुई रक्त की धार ने घीसी के हाथों और कपडो को रंग दिया । गबरु ने आखिरी बार घीसी को आंखें फाड़कर देखा । गबरु की आंखो से अश्रुधार बह निकली और घीसी की गोद में  आखिरी सांस लेकर एक ओर लुढक गया । घीसी की आंखे कभी गबरु को देखती तो कभी शून्य को ताक रही थी । घीसी की आंखो मे गहरा अवसाद और अंतहीन पीडा बढती जा रही थी ।

जीवन परिचय

 नाम:- विजय सिंह मीणा
जन्म तिथि: - 01 जुलाई 1965
जन्म स्थान: ग्राम-जटवाड़ा, तहंसील-महवा, जिला-दौसा, राजस्थान
शिक्षा: - एम. . (हिंदी साहित्य), राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
सेवाएं: - केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, नई दिल्ली एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली में पदासीन रहे।
संप्रति:-  उप निदेशक (राजभाषा), विधि कार्य विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय, शास्त्री भवन, नई दिल्ली
प्रकाशित रचनायें: -राष्‍ट्रीय स्‍तर की  विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता लेख प्रकाशित तथा विभिन्न साहित्यिक सम-सामयिक विषयों पर आकाशवाणी  एवम दूरदर्शन से वार्तायें प्रसारित ।
                         -रचनांए-
1-मीणा लोक-साहित्य एवं संस्कृति            लोक साहित्य 
2- स्वाति                        काव्य संग्रह
3- विजय शतक                   दोहावली
4- क्यों जाते हो मधुशाला                काव्य
5- सिसकियाँ                            कहानी संग्रह
6- मीन मानस                    मीन पुराण का काव्यानुवाद
7- भूमिपाल                      ऐतिहासिक उपन्यास
8- निशांत                        कहानी संग्रह
अभिरूचियाँ: - प्राचीन ऐतिहासिक एवं पुरातत्व महत्त्व के स्मारकों एवं स्थलों का भ्रमण.
संपर्क:-  - -30-एफ ,जी - 8  एरिया , वाटिका अपार्टमेंट ,एम आई जी फ्लेट,
        मायापुरी , नई दिल्ली 110078 .

मोबाईल - 09968814674  Email- vijaysinghmeenabcas@gmail.com


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