हम अपने राष्ट्र के नायको और
शहीदों के प्रति कितने लापरवाह हैं यह इस बात से पता चलता हैं कि आज़ादी के 65 साल बाद भी हम उनकी याद
में एक राष्ट्रीय स्मारक तक नहीं बना पाए हैं| 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति ‘इंडिया गेट’ पर भारतीय सेना की सलामी लेते
हैं| ‘इंडिया गेट’ भारतीय ब्रिटिश सरकार ने उन
भारतीय सैनिको की याद में बनवाया था जिन्होंने 1914 के विश्व युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिए
अपनी जान दी थी| हमारे विदेशी आकाओ ने तो अपने वफादारो की कुर्बानी को सम्मान दने
के लिए ‘इंडिया गेट’ जैसी भव्य ईमारत बनवाई, परन्तु हमें
और हमारी सरकारों को 1857
की क्रांति में और उसके बाद आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए लाखो राष्ट्र नायको की
स्मृतियों को सजोने वाला उस जैसा वैभवशाली स्मारक बनाने का ख्याल क्यों नहीं आता? स्वतंत्रता दिवस हो या
गणतंत्र दिवस क्या हमारा कर्तव्य नहीं हैं, कि हम देश के शहीदों के निम्मित किसी
स्थान पर जलसा कर उन्हें श्रद्धांजलि दे?
भारतीय समाज में अंग्रेजी की
प्रभुता बादस्तूर जारी हैं| अंग्रेजी आज भी केन्द्र सरकार की राज काज की भाषा बनी
हुई हैं| भारत के तथाकथित अच्छे स्कूल भी अंग्रेजी माध्यम में ही पढाई कराते हैं|
अंग्रेजी आज भी हमारे सत्ताधारी और सभ्रांत वर्ग की भाषा हैं| भारत में अंग्रेजी
बोलना सम्मान और प्रतिष्ठा का विषय हैं| शायद हम आज तक भी ब्रिटिशराज और उसकी गुलामी
की छाया से उबर नहीं सके हैं, हमारे राज-काज के नक़्शे-कदम यही बयां कर रहे हैं|
हम बचपन से सुनते-पढते आ
रहे हैं के हमने आज़ादी अंग्रेजो से लड़ कर प्राप्त की| अपने को विजयी मान हमारे मन
में ये भाव आते रहे कि 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन व्यवस्था का अंत
हो गया हैं| परन्तु अंग्रेज इतिहासकारो के अनुसार ब्रिटेन ने अपनी इच्छा और सुगमता से
हिंदुस्तानियों को आज़ाद किया और वे इसे ‘सत्ता का हस्तांतरण’ मात्र कहते हैं| सत्ता के हस्तांतरण का अर्थ हैं कि शासन
व्यवस्था पुरानी बनी रही और केवल सत्ता हिंदुस्तानियों को सौप दी गयी| यहाँ तक कि
यह सत्ता का हस्तांतरण भी कुछ मायनो में अपूर्ण प्रतीत होता हैं क्योकि कुछ महीनो
तक तो लोर्ड माउंटबेटन ही भारत के गवर्नर-जनरल बने रहे| भारत आज तक भी अंग्रेजो के
गुलाम रहे राष्ट्रों के संगठन ‘ब्रिटिश राष्ट्र मंडल’ का सदस्य हैं, जिसकी अध्यक्षा ब्रिटेन की महारानी हैं|
अंग्रेजो ने हिंदुस्तान को
ब्रिटेन के उपनिवेश को तौर पर विकसित किया था| ब्रिटेन के हितों की पूर्ति के लिए
भारत के हितों का दमन एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी| अंग्रेजो के गोरे-काले के नस्लीय
भेद-भाव ने शासन व्यवस्था को और अधिक कठोर और शोषणकारी बना दिया था| अंग्रेजो ने
भारतीयों पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए नौकरशाही का फौलादी शिकंजा कसा| 1861 के पुलिस अधिनियम के
तहत पुलिस को हिन्दुस्तानी नागरिको के विरुद्ध बेतहाशा अधिकार दे दिए गए| अंग्रेजो
के जुल्मो का विरोध करने वाले समुदायों का दमन करने के लिए ‘अपराधी जाति अधिनयम, 1871’ का निर्माण कर इन
समुदायों को जन्म जात अपराधी घोषित कर दिया गया और पुलिस को इनके विरुद्ध कायवाही
करने की असीमित शक्ति प्रदान कर दी गयी| अंग्रेजो ने अपने शोषणकारी तंत्र को बनाये
रखने के लिए, कानून व्यवस्था के नाम पर भारतीय नागरिको, विशेषकर
स्वतंत्रतासेनानियों, पर अनेकोनेक जुल्मोसितम ढाए| वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878, भारतीय शस्त्र अधिनियम
1878, रौलट अधिनियम 1919 आदि अनेक कानूनों के
माध्यम से भारतीयों को निशस्त्र कर उनकी स्वतंत्रता का दमन किया गया|
आज़ादी के बाद अंग्रेजो की शासन
व्यवस्था और कानूनों का अंत नहीं किया गया बल्कि यह अनवरत चलती रही| आज़ादी मात्र
सत्ता का हस्तांतरण मात्र बनकर रह गयी| यहाँ तक कि हमारा संसदीय लोकतंत्र ‘भारतीय परिषद अधिनियम, 1935’ पर आधारित हैं| भारतीय
नौकरशाही का शिकंजा जस का तस बना हुआ हैं| भारतीय पुलिस आज भी ‘पुलिस अधिनियम 1861’ के तहत कार्य कर रही
हैं| अपराधी जाति अधिनियम की जगह आदतन ‘अपराधी अधिनियम, 1959’ ने ले ली हैं| अंग्रेजो के ज़माने की ‘भारतीय दंड सहिंता, 1860’ आज भी चल रही है और ‘क्रिमनल प्रोसीजर कोड 1861,’ सन 1972 तक चलते रहे हैं| कहना
न होगा कि ज्यादातर अंग्रेजी शासन व्यवस्था और कानून आज भी चल रहे हैं| क्या आज़ादी
के बाद भी सत्ताधारी वर्ग की निगाह आम आदमी का वही हीन स्थान हैं जो अंग्रेज शासको
की दृष्टी में था? क्या भारत के राजनेता ये मानते हैं कि आम नागरिक पर आज भी पहले
जैसा शिकंजा कसे जाने की ही जरूरत हैं, अन्यथा देश बिखर जायेगा? या फिर हम एक
आंतरिक उपनिवेश में जी रहे हैं?
अंग्रेज ने अपने औपनिवेशिक
साम्राज्य को न्यायोचित ठहराने के लिए ‘श्वेत व्यक्ति का भार सिद्धांत का’ प्रचार किया था| इस सिद्धांत के
अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य का उद्देश्य काले भारतीयों को सभ्य बनाना था| अंग्रेजो
ने भारत में आधुनिक प्रतिनिधि संस्थाओ का विकास किया| एक अंग्रेज अधिकारी ए. ओ.
ह्यूम ने 1885
में भारत के सबसे बड़े राजनैतिक दल ‘भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस’ की स्थापना भी की थी, कालांतर
में कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की आवाज़ और उसकी अगुआ बनी| आज़ादी के समय
कांग्रेस और मुस्लिम लीग हिंदुस्तान के सबसे बड़े सियासी दल थे जिन्होने क्रमश भारत
और पकिस्तान की बागडौर संभाली| भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन और स्वतंत्रता संघर्ष
में गाँधी जी और कांग्रेस की महती भूमिका को भारतीय इतिहास लेखकों ने स्वीकार किया
हैं, परन्तु हम आज भी 1857 मे अंग्रेजो के विरुद्ध लड़े गए युद्ध को स्वतंत्रता
संग्राम कहने में हिचकते हैं? 1857 और द्वितीय विश्व युद्ध में आज़ाद हिंद फौज में लड़े भारतीय
सैनिक बेशक अंग्रेजो के राज भक्त नहीं थे, परन्तु वो दूसरे भारतीय सैनिको से अधिक
देश भक्त थे| देश के लिए शहीद हुए लाखो हिन्दुस्तानी नागरिक और ये सैनिक हमारी सच्ची श्रद्धा और
सम्मान के पात्र हैं| आओ हम इनकी याद में एक राष्ट्रिय स्मारक, भारत द्वार या
हिंदुस्तान द्वार या कोई स्तंभ या फिर मीनार, के निर्माण का संकल्प ले|
डा. सुशील भाटी
प्रवक्ता, इतिहास विभाग,
राजकीय महाविद्यालय बाजपुर,
उधम सिंह नगर, उत्तराखंड|
मो.09411445677
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