'रास्ता'
ज़िंदगी के सफर में
वक्त से तेज़ दौड़ते
वक्त से तेज़ भागते
छूट गए कई रास्ते
थककर हांफते लम्हें
कैसे देखते पड़ाव
रह गए वो भी बस
खुद को संभालते
गति से विरत नहीं
गति में रत नहीं
न बैठता चुपचाप
न तेज मैं भागता
शायद पाता मंज़िल
शायद ना भी पाता
लेकिन पा ही जाता
सारा सुख सहज ही
सारा सौंदर्य निहारता
सब दे ही देता मुझे
जो सदा से है मेरा
सदा साथ है निभाता
मेरा चिर संगी रास्ता
लेखक अशोक जमनानी
अच्छी कविता भाई
जवाब देंहटाएं