मुख़ौटा (लघु कथा)

. . 4 टिप्‍पणियां:



'अब लगता है ,पुरुष समाज सुधर रहा है |'
अर्चना ठाकुर
अपनी पत्नी सुधा की टिप्पणी पर उसका पति नीलेश जाते जाते रुक जाता है |
'क्या मतलब|'
अपने बॉस के सामने जब मैंने अपनी छुट्टी की अप्लीकेशन रखी तो हमेशा तो
मुस्कराओ तभी बात सुनते थे ,अबकी तो अपने लैपटाप से नज़र तक नहीं हटाई ,और
साइन भी कर दिया |'अनचाही ऊब उसके चेहरे पर दिखने लगी |
'हा हा - सुधि - ऐसे बूढ़ो पर तरस खाना चाहिए - ये तो चुसा हुआ आम है
,जिनकी जगह सिर्फ कूड़ेदान है - और कुछ दिन खुद को ताज़ा आम समझ जी लेते है
तो जीने दो - तुम उन सबकी परवाह मत किया करो - सुना है न - आप भला तो जग
भला |'
अपने पति को ऑफिस जाते देख सुधा बड़ी नीरसता से उसे 'बॉय' कहती है |वो समझ जाता है |
'सुधा तुम्हारा पैर ठीक होने के लिए दो महीने तो तुम्हें अच्छे से रेस्ट
करना ही होगा |'
एक शाम ऑफिस से आते आकस्मिक दुर्घटना में सुधा का एक पावँ जख्मी हो गया
था | डॉक्टर ने उसके पावँ पर अभी कच्चा प्लास्टर बांधा था ,और उसे पूरा
आराम करने की ताकीद भी दी थी |पर एक जुझारू ऑफिस जाने वाली महिला सुधा के
लिए घर पर आराम से बैठना किसी दण्ड से कम नहीं था |
'मैं समझता हूँ सुधि - अच्छा तुम ऐसा करो फ़ेस बुक जॉइन करो समय कटेगा -
हाँ - पर ध्यान से|'
पति चला गया पर उसका आखिरी शब्द वो समझ नहीं पाई की वो किस विषय पर ऐसा कह गए थे |
आखिर सुधा ने अपना लैपटाप खोला और क्षण भर में नेट से वाकिफ़ होती वो
फेसबुक पर आ गई |
अब तक समय अभाव या नेट के प्रति अरुचि थी की वो इस सोशॅल नेटवर्क में
शामिल नहीं हुई थी |पर अब कुछ ही दिनों में लोगों को मित्रता संदेश भेजती
और संदेश पाती सुधा के मित्र की सूची सौ का आकड़ा पार कर गई थी | अब तो ऑन
लाइन होते ही कई महिला पुरुष उससे बात करने आ जाते थे |सुधा ने ख़्याल रखा
था की नव युवकों की मित्रता से बचे क्योकि उनकी स्वछंद पोस्ट के समकालीन
सोच उसकी नहीं थी |अधेड़ मित्रों से बात करते चर्चा करते अब धीरे धीरे उसे
कुछ खटकने लगा था |
'उफ अब समझ आया,पहले जो सड्को पर छेड़ छाड़ होती थी - आंखो से रूप का पान
होता था ,अब वे शोहदे नेट पर आ गए है - अब अधेड़, बूढ़े अपनी बेस्वाद
ज़िंदगी को मसाले दार बनाने नेट पर मज़ा लेते है - एक तरफ लगता है की अपने
बारे में सारी जानकारी डालने वाली प्रोफ़ाइल गलत नहीं होगी,पर यही बूढ़े
उम्र की दहलीज़ पार कर महिला मित्रों को मित्र कह कर उनकी निजी ज़िंदगी में
घुसते घुसते उनकी निजता पाने का कुचक्र चलाने लगते है ..उफ ..अब समझ आया
क्यों कहा था ..सावधान..|'

 अर्चना ठाकुर

लेखिका हाल के दिनों की चर्चित युवा हस्‍ताक्षर हैं

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक आम जिन्दगी की हकीकत से बतियाती छोटी कहानी जिसमे इन्सान के बाहरी रूप और छद्म-रूप को बिना लाग-लपेट के रेखांकित करने की सफल कोशिश हुई है वह भी "सावधान" निर्देशन के साथ। बधाई अर्चना जी

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://manoramsuman.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. Nihsandeh lekhika ki vaichariki bahut sunder aur purushvadi soch ko naye sandarbh men samne lati hai magar abhi isko bhasha aaur shilp ke astar per kam karne ki jaroorat hai.

    जवाब देंहटाएं

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