भाई मणिक एक सरकारी कर्मचारी है लेकिन दिल से समाजसेवी है,और संस्क़ति कर्मी के रूप में उनको प्रमुखता से जाना जाता है , वैसे ये जनाब उन गलियों में गलियों में भी उजाला भरने की कोशिस करतें हैं और कामयाबी की ओर अग्रसर हैं शुरूआत परिवार पूरी तरह से उनके पथ में साथ चलने का वादा करता है,पेश हैं उनकी कविता पहली बार हमारी ब्लोगबुक में , धन्यवाद भाई मणिक इस महती सहयोग के लिए हम आभारी हैं
मनमोहन कसाना संपादक
(1)
छितराए बादलों के बीच
हंसता हुआ आकाश
साफ़ दिखता है
दूर से मगर
दर्द की तहों का मेल
जमा है दिल में कितना
कलेजा जानता है
उसका
(2)
गले पड़े गुलबंध की तरह
एक चेहरा
तीसों दांत से हँसते हुए
सरकता है बार-बार
गरदन के आसपास
तेज़ ठण्ड में
गुज़रती हवाओं की तरह
हर बार देता है
प्यार की
एक थपकी
सर्द रात में
ओढ़े हुए कम्बल की मानिंद
साथ निभाता है
(3)
चारों तरफ से भींचे हुए
आदमी की शक्ल
आज
जाने क्यूं
हमारी ही सूरत से मिलती है
हर मुसीबत पूछती है
पता
हमारे ही घर का
आज
जाने क्यों
निशाना साधती है
सारी बंदूके
हमारी ही छाती पर
(4)
दूर तक कोंधेंगे कुछ दृश्य
जहां
हमारी गरदनों को रेतने
आतुर थे
तमाम हथियार
चाकू, दराती और छूर्रियों से
बयान उनके कड़वे ज़हर थे
कैसे उतरे थे
गले से नीचे
हमारी छाती जानती है
हत्यारी मुठ्ठियों में
वे तेज़ धार तलवारें
चमकती है
आज भी
स्मृतियों में गलफांस की तरह
आख़िरी वक्तव्य कि
ये बस
अब एक अफवाह है
कि
हम ज़िंदा है
*माणिक *
मनमोहन कसाना संपादक
(1)
छितराए बादलों के बीच
हंसता हुआ आकाश
साफ़ दिखता है
दूर से मगर
दर्द की तहों का मेल
जमा है दिल में कितना
कलेजा जानता है
उसका
(2)
गले पड़े गुलबंध की तरह
एक चेहरा
तीसों दांत से हँसते हुए
सरकता है बार-बार
गरदन के आसपास
तेज़ ठण्ड में
गुज़रती हवाओं की तरह
हर बार देता है
प्यार की
एक थपकी
सर्द रात में
ओढ़े हुए कम्बल की मानिंद
साथ निभाता है
(3)
चारों तरफ से भींचे हुए
आदमी की शक्ल
आज
जाने क्यूं
हमारी ही सूरत से मिलती है
हर मुसीबत पूछती है
पता
हमारे ही घर का
आज
जाने क्यों
निशाना साधती है
सारी बंदूके
हमारी ही छाती पर
(4)
जहां
हमारी गरदनों को रेतने
आतुर थे
तमाम हथियार
चाकू, दराती और छूर्रियों से
बयान उनके कड़वे ज़हर थे
कैसे उतरे थे
गले से नीचे
हमारी छाती जानती है
हत्यारी मुठ्ठियों में
वे तेज़ धार तलवारें
चमकती है
आज भी
स्मृतियों में गलफांस की तरह
आख़िरी वक्तव्य कि
ये बस
अब एक अफवाह है
कि
हम ज़िंदा है
*माणिक *
- Web:- http://manik.apnimaati.com/
- E-mail:-manik@apnimaati.com
- Cell:-9460711896
भाई कविताओं को स्नेहिल इंट्रो के साथ यहाँ साझा करने का शुक्रिया। जहां तक मेरी जानकारी है इस तरह मेरी सामग्री को दूजे ब्लॉग आदि पर पहली बार किसी मित्र ने साधिकार साझा किया गया है।अब तक ये काम हम ही करते रहे यानिकी कट-कोपी-पेस्ट।
जवाब देंहटाएंये तो आपकी निष्पक्ष रचना शीलता के लिऐ हमारा सलाम है भाई
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