इंदिरा आवास
रामप्यारी काफी खुश दि खाई दे रही थी आज उसका झोंपडी से निकलकर नया घर बनाने का यपना पूरा होता दि ख रहा था रवि को उसने आज ही पांच हजार रूपये दीये थे इंदिरा आवास दिलाने के, लिस्ट जारी हुई तो सेक्रेटरी भी मिठाई के एक हजार रूपये ले ही गया, वह अब खुश थी कि चलो पैसे गये सो गये कम से कम घर तो पक्का बन जायेगा, पहली किस्त मिली पर ये क्या् ............................ इसमें से 10 प्रति शत तो सरपंच ने ही रख लिए, कम खा गम खा की तर्ज पर वह बेचारी गरीब इसपर भी संतुष्ट हो गई, काम चालू हो चुका था ,
कर्ज पर रूपये लेकर जैसे कमरा बन ही गया, वह सोच रही थी की चलौ जो पचास हजार कर्ज हुआ है वो किस्त मिलते ही चुका देगी, दूसरी किश्त मिली तो कर्मचारियों ने खर्चे के नाम पर ऐंठ लिऐ 2000, कुल जमा हिसाब किया तो 25-30 हजार का कर्ज रह ही गया, और आजकल वह इंदिरा आवास से पहले के दिनों को सोचकर ही खुश हो लेती, क्योंकि कर्ज चुकाने की ऐवज में सालभर में घर 40 हजार काबेच दीया, उपर से पेटपालन की खातिर बौहरों के गैत में काम करते है,
मकान को श्री रवि ने ही कमीशन लेकर बिचबाया था मान गये रवि जी रामप्यारी का काम करा ही दीया,
मनमोहन कसाना
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