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मनुष्य सजीव प्राणी है बुद्धि
के बलबूते पर दूसरों के दिलों-दिमाग को समझना और कल्पना करने की अद्भुत क्षमता मनुष्य में
है। शोक, प्रेम, हास, उत्साह, भय, घृणा, विस्मय, रौद्र, और शांत मनुष्य
स्वभाव की भाव-भावनाएं होती हैं। अलग-अलग
स्थितियों में इन भावों का प्रमाण कम-अधिक रहता है। पशु-पंछी मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी तो है नहीं परंतु भाव-भावनाएं जरूर होती है....
अजय घर में पालतू बिल्ली के साथ घुल-मिल गया था। उसके
रेशम जैसे बाल, लाल-गुलाबी होंठ,
लंबी मूछें, रात के अंधेरे में चमकती आंखें,
लंबी पूंछ और‘म्याव’अजय के मनोरंजन का साधन थी। अजय हमेशा प्यारी बिल्ली के
साथ खेला करता था। परंतु जाने-अनजाने उससे बिल्ली के साथ ज्यादतियां हो रही थी। बिल्ली की
लंबी मूछों को खिंचना, पूंछ पकड़कर बिल्ली को उठाना, लाठी लेकर उसके पीछे दौड़ना और उसे चोट पहुंचा कर उसकी ‘म्याव’ सुनना उसका शौक बना था।
बेचारी बिल्ली अजय की इन हरकतों से परेशान होकर दूर भागती थी। कभी-कभार दौड़ कर अल्मारी में छिप जाती। अजय के मम्मी के गोद में ‘म्याव’करके शिकायत भी करती।
मां ने अजय को बार-बार समझाया, "बेटा अजय बिल्ली बोल तो नहीं सकती, परंतु तुम्हारी हरकतों
से उसे पीडा होती है, चोट पहुंचती है, तुम
जरा उसके साथ प्यार से पेश आओ।"
अजय शरारती था। मम्मी क्या बता रही है और बिल्ली को कौन-सी परेशानियां
हो रही हैं, समझ नहीं रहा था। ऐसे ही एक दिन अजय ने बिल्ली की
पूंछ पकड़ कर ऊपर उठाया, घुमाया। परेशान करना शुरू किया केवल ‘म्याव’सुनने के लिए।
अजय की मम्मी ने अजय की इस हरकत को देखा और सोचा कि इसे पाठ पढाना जरुरी है।
अजय के हाथों से बिल्ली जब छिटकर भागी तब मम्मी ने अजय को लपक कर पकड लिया। पैरों को
पकड़ कर कई बार ऊपर उठाया। परेशान किया, हवा में घुमाया। अजय का
रो-रो कर बुरा हाल हो गया। आंखें लाल हो गई, पैर दर्द करने लगे। एक बार सर दीवार पर टकराकर खून भी बहने लगा।
अजय के पीडाओं की सीमाएं खत्म हो गई। बेहाल होकर उसने मम्मी को कहा,
"तुमने बेवजह मुझे परेशान किया है। मैं पापा के पास तुम्हारी शिकायत
करूंगा।"
मम्मी बोली, "बेटा, मैं भी
तुम्हें कई दिनों से यहीं समझा रही थी। तुम्हारे पास मम्मी पापा है। पर इस बेचारी के
पास कोई है नहीं, किसके पास शिकायत करेगी ? तुम्हें जैसे दुःख, दर्द, डर-भय लगा, खून आया उसी तरिके से बिल्ली को रोज लगता है।
पशु-पंछियों को भी भाव-भावनाएं होती हैं।"
अचानक अजय के दिमाग में मानो प्रकाश पड़ गया और उसने मां से क्षमा मांगी। किचन
में जाकर दूध कटोरी में भर कर बिल्ली को दे दिया और उसके मुलायम माथे पर हाथ फेरते
कहा, "अब मैं तुम्हें परेशान नहीं करूंगा, पशु-पंछियों को भी दुःख-दर्द होता
है, उनकी भी भाव-भावनाएं होती है।"
डॉ.विजय शिंदे
देवगिरी महाविद्यालय,औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
ई-मेल drvtshinde.blogspot.com
सच पशु पक्षी के दर्द को भी हमारे जैसे दर्द होता है ...बहुत ही सुन्दर ...मुझे भी प्रकृति के सभी जीव जन्तुयों के बीच बहुत अच्छा लगता है ..मैं अपने आस पास यह सब देख बहुत खुश होती हूँ ...कभी कभी अपने ब्लॉग पर लिख लेती हूँ...
जवाब देंहटाएंकविता जी आपको लेख पसंद आया धन्यवाद। खुशी हुई की आप भी प्रकृति के प्रति प्रेम रखती है और सभी जीव-जतुओं की आत्मा की आवाज को महसूस करती है। वैसे आम तरिके से देखे तो प्राकृतिकता सब को पसंद आती है पर उसके प्रति सजगता एवं सहज भाव कम रहता है। आपमें वह सहजता और सजगता है। धन्यवाद। आपके ब्लॉग को मैं पढता रहूंगा और आशा करता हूं इसी प्रकार हमारी चर्चा जारी रहेगी।
हटाएंसुन्दर कहानी के द्वारा आपने सही बात कही है है . सुना है कि पेड़-पौधों में भी भाव-भावनाएं होती है बस हम ही मूढ़ हैं कि समझ नहीं पाते हैं .
जवाब देंहटाएंअमरिता जी आपकी टिप्पणी को पढ कर खुब हंसी आई। आप पुछेंगे कि 'क्यों भाई।' इसिलिए कि मुझे लगा मेरा कान पकड कर कोई खिंच रहा है और कह रहा है,'सुना है पेड पौधों में भी भाव-भावनाएं होती है?'
हटाएंवैसे उत्तर तो आपने आगे दे ही दिया है हम मुढ है कि समझ ही नहीं पाते। पर मैं कहूं हम समझते हैं आस-पास हरिहाली हमेशा मनुष्य ने पसंद की है। उसके अकुंरित होने से फूलने-फलने तक की गतिविधियों का नजारा भी वह देखता है। पशु थोडे मनुष्य से उपेक्षित है पर पेड-पौधे नहीं।
विजय जी पशु पंक्षियों को भी सुख दुःख का एहसास होता है,कहानी के माध्यम से अच्छी तरह समझ में आता है.हम सब को इसका ख्याल रखना चाहिए.इस ब्लॉग से वर्ड वेरिफिकेशन को हटा ले तो अच्छा होगा.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल राजेंद्र जी इस कहानी को लिखने के पिछे मेरा यहीं उद्देश्य था कि एक संदेश पहुंचे और हमारा बर्ताव पशु-पंछियों के साथ प्यार से रहे। वैसे इसे मैंने बच्चों को ध्यान में रख कर लिखा है। आपने वर्ड वेरिफिकेशन के बारे में लिखा है, इसके बारे में मनमोहन कासना जी निर्णय लेंगे। हो सकता है टिप्पणियों को देख कर इस बात की ओर वे गौर करेंगी।
हटाएंपूरी तरह से सहमत हूँ ......
जवाब देंहटाएंनिशा जी कहानी स्वरूप वाला लेख आपके पढने में आया और मेरे विचारों के साथ सहमति दर्शाई आभार।
हटाएंडॉ.निशा जी लेख स्वरूप कहानी के लिए सहमति दर्शाई आभार।
हटाएंविजयजी,
जवाब देंहटाएंसरल और बोलचाल की भाषा में आप का कहानी के व्दारा दिया सन्देश मिला। आप ने ठीक ही कहा है,"हमें कभी भी जानवरों और पक्षियों के प्रति कठोर नहीं होना चाहिये।"सुन्दर अभिव्यक्ति है।
कभी मेरे ब्लोग http://www Unwarat.com पर आइये । मैंने उस में कुछ नये लेख और कहानियाँ भी लिखी हैं-
१-वाह! कैन्ट दर्शनीय कैन्ट(लेख)
२-रक्खें नजर अपने लेखन पर।(लेख)
पढ़्ने के बाद अपने विचार व्यक्त करें।
vinnie
विजय जी,
जवाब देंहटाएंआप की कहानी व्दारा सरल ,मधुर और सीधी भाषा में लिखा सन्देश मिला कि हमें जानवरों और पक्षियों के प्रति व्यवहार में कभी कठोर नहीं होना चाहिये।
सुन्दर अभिव्यक्ति,
विन्नी,
I do not understand why my comment is not visible.
जवाब देंहटाएंVinnie
विन्नी जी आपकी तीनों टिप्पणियां एक साथ पढ रहा हूं। पहले ही आपको बता दूं टिप्पणियां विजिबल होने के लिए थोडा समय लगता है। पर इसके माध्यम से मैं महसूस कर रहा हूं कि आप अपना संदेश मेरे पास जल्दि पहुंचाना चाहती है।
जवाब देंहटाएंखैर आपका मेरे प्रति स्नेह है और मेरा लिखा पसंद करती है आभार।
VIJAY SHINDE, Vinnie Pandit,जी
जवाब देंहटाएंआप लोगों गलती के लिये क्षमा प्रार्थी हू आगे तुरन्त टिप्पणी प्रकाशित होगी
शुरूआत मैगजीन प्रस्तुत करती है
जवाब देंहटाएंस्व श्री भगवत पटैल की स्म्रति में सालाना पटैल पुरूस्कार
जिसकी राशि है '' 3100 '' रू
यह साहित्य कि कहानी के लिये है
रचनाऐं मंगल फोंट में manmohan.kasana@gmail.com पर भेज सकते हैं
सबसे आच्छी कहानी को मिलेगा पहला पुरूस्कार
समय है 30 मई तक
परणिाम 5 जून को बता दीया जायेगा
मनमोहन कसाना
संपादक
www.shuruaathindi.org