दरवाजे पे एक बच्चे की रोने की आवाज से ही समीर का दिल आज फिर कांप उठा था ,की आज फिर कोई बच्चा इस आश्रम मे आगया परेशान होने के लिए ,मार खाने के लिए ,अभी वो खुद भी तो मात्र १० साल का था ,पर उसे अब पता चल गया की अनाथ होना क्या होता है .जेसे ही बच्चे के रोने की आवाज आई वो उस बच्चे की तरफ गया ,देखा बच्चा रो रहा था ,’शायद माँ से बिछड़ने का ही दर्द था ,अब वो सोचने लगा की मेरी माँ ने मुझे यहाँ लाकर छोड़ा तो मे भी ऐसे ही रोया होउगाऔर केसे मेरी माँ की जान जली होगी मुझे अपने से दूर करते हुए ,हाँ शायद कोई मजबूरी रही होगी . पता नहीं पर ये भी देखा था की अनाथ आश्रम में लडकिया ही ज्यादा थी ,लड़के तो कम ही थे .जहाँ लडकिया ५० थी लड़के ५ ही थे . पता नहीं क्यों ये बात समीर को समझ नहीं आई ,तभी उसने उस रोते हुए बच्चे को उठाया और चुप कराने की कोशिश करने लगा ,अचानक आश्रम के कर्मचारी गोपालजी आगये ,और समीर के हाथो से बच्चा लेलिया और दो मिनिट बाद एक गली बोली कहा की बेटी है ,समीर को ये समझ न आया की हर बेटी के आने पर ये गली क्यों बोलते है और बाल मन समीर ने सोचा की इनको पता केसे चलता है की बेटी है पर वो ख़ामोशी से देखता रहा …………. फिर गोपाल जी उसको अन्दर ले गए …… उसने सोचा की केसे हाथो में इसके माता -पिता ने लड़की को सोंपा है क्या होगा इसके साथ ,कितनी प्यारी बच्ची है ,अब समीर उसका खूब ध्यान रखने लगा उसे पता था की अगर वो रोयेगि तो इतनी छोटी है तो भी मार खाएगी क्यों की गोपाल जी को रोते हुए बच्चे बिलकुल भी पसंद नहीं थे . ऐसे ही वो बच्ची एक साल की हो गयी ,यहाँ आश्रम आने वाले हर बच्चे का नाम रखा जाता था तो उसका नाम शमा रखा गया तो अब वो मुसलमान बन गयी पर बच्चे कहा लिखवा कर लाते है की वो कोन सी जात के है ये तो आश्रम वालो की ही देन थी . खेर अब समीर को डर लगने लगा था की शमा का क्या होगा जितना होता था वो उसे गोपाल जी की मार से बचा लेता था दिन बीतते गए शमा अब तीन साल की हो गयी थी उसे खेलने के लिए खिलोने भी नहीं दिए जाते थे क्योकि बड़े बच्चे खोस लेते थे ,तब भी समीर को बहुत गुस्सा आता था पर करे क्या अब तो शमा को झाडू लगाना ,घर साफ करना सिखा रहे थे ,तो समीर उनके हाथ से झाड़ू छीन लेता था और कहता में कर लूँगा ,उसे मत कहो ये मेरी छोटी बहन है अब समीर का कम बढ़ गया था पर उसे कोई दिक्कत नहीं थी वो तो शमा को अच्छे से सम्भालना चाहता था एक दिन समीर को कुछ लेने के लिए बाहर भेजा गया वापस आया तो देखा गोपाल जी शमा को मार रहे थे ये देख वो रोने लगा उसने शमा को गोपाल जी से छुड़ाया पता चला की एक काच का गिलास शमा से टूट गया था .जब गोपाल जी गुस्से से चिलाते हुए आश्रम से बाहर गए तो समीर ने शमा को अपने पास बिठाया ,शमा रो रही थी पर रोने की आवाज नहीं आरही थी ये जानकर उसे ज्यादा बुरा लगा की शमा बहुत ज्यादा डर गयी है पर शमा ने अपना पैर दिखाया तो वो जोर से रोने लगा क्यों की उसमे से खून निकल रहा था .अब उसने गोपाल गी से विनती कर के ड्रेसिंग का सामान ले आया और उसे पट्टी कर दी ,अब समीर बहुत दुखी हुआ उस रात उसे नीद नहीं आई और सोचता रहा केसी जिंदगी जी रहे है हम और उसने सोचा की अब उसे केसे भी कर के यहाँ से भागना है ,पर शमा को छोडके केसे भागे ,किस्मत ही कहो की उसे दुसरे दिन ही कुछ लाने के लिये भेजा पर उसकी जान तो वही आश्रम में ही अटकी थी की कही आज भी शमा को मार न पड़े ,वो जिस दुकान से सामान लाने गया दुकानदार को किसी अन्य से कहते सुना की कोई लड़का देखो दुकान के लिए वो बीच में ही बोल पड़ा की क्या में आ जाऊ पर मेरी एक बहन भी साथ होगी हमें रहने के लिए एक कमरा और खाने के लिए रोटी और थोड़े से पैसे देदेना हमें मंजूर है ,अब दुकानदार ने हाँ तो भर दी पर उसने आशंका व्यक्त करते हुए कहा की तुम्हारे आश्रम वाले कुछ कहेगे तो नहीं समीर ने कहा की वो मुझे जबरदस्ती तो नहीं रख सकते आश्रम में दुकानदार ने कहा की कानून मेरे खिलाफ हो गा की इतने छोटे बच्चे को काम पे रखा ,समीर बोला की कानून ये भी तो देखने नहीं आता की तीन साल के बच्चो से आश्रम में काम करवाते है .दुकान वाला बोला आजाओ काम करने को काम करने वालो की में क़द्र करता हु समीर ने कहा जैसे ही मौका मिला भाग के आजाऊंगा दो दिन बाद ही समीर को मौका मिल ही गया गोपाल जी आश्रम से कही बाहर गये हुए थे समीर शमा को लेके भाग गया पर उसको ये भी दुख था की और कितनी शमाए है आश्रम मे जिनके लिए वो कुछ नहीं कर सकता पर उसने तय कर लिया की कभी न कभी उन सब के लिए कुछ करेगा जरुर अब आश्रम मे इस खबर से हल्ला मच गया की समीर शमा को ले कर भाग गया आखिर बहुत ढूँढने पर गोपाल जी को पता चल गया की वो दुकान में काम कर रहा है गोपाल जी ने दुकान वाले को बहुत डराया तो समीर बोला की में आपके खिलाफ पुलिस में लिखावाके आता हु की आप बच्चो को मारते है ,गोपाल जी डर गए बिना कुछ बोले वहाँ से चुप चाप चले गए .दिन महीने साल बीतते गए समीर ने दुकानदार का मन जीतालिया ,समीर ने शमा का नाम भी बदल कर सरिता रखा लिया इसके लिय समीर ने ऊपर वाले से माफी भी मागी की मेरी बहन है तो शमा नहीं सरिता ही अच्छा नाम है .आब सरिता बड़ी हो गयी समीर ने उसे पढ़ाया लिखाया एक दिन दोनों आश्रम के आगे से निकल रहे थे तभी किसीसे पाता चला की गोपाल जी बीमार है ,इंसानियत के नाते अन्दर पूछने गए तो देखा की तबीयत बहुत ख़राब है .गोपाल जी ने समीर को देखा तो पूछा क्या तुम आश्रम सम्भाल लोगे ,सुन के समीर की आँखों में आँसू आगए और हाँ बोल दिया ,कुछ समय बाद गोपाल जी चल बसे अब सरिता आश्रम और समीर आश्रम सम्भाल ने लगा लेकिन एक बात का उसे आज भी गुस्सा था की ये माता-पीता एसा करते क्यों है ,जिससे एक बच्चे की पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है ,समीर और सरीता को ये सकून भी था की उन्होंने बहुत सारे बच्चो की जिंदगी संवार दी है
नाम ;शांति पुरोहित
जन्म तिथि ; ५ १ ६१
शिक्षा; एम् .ए हिन्दी
शौक ;लिखना पड़ना
जन्म स्थान; बीकानेर राज.
वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित
कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .
email...shanti.purohit61@gmail.com
सुन्दर अभिव्यक्ित
जवाब देंहटाएंbahut shukriya manmohanji
हटाएंbahut shukriya sir
हटाएंअच्छी कहानी है, अनाथ बच्चों का अपना अलग ही एक दर्द का रिश्ता होता है। जो इन रिश्तों को समझ लेता है वह एक दूसरे की मदद करते हैं। आपकी कहानी का नायक समीर उन्ही समझदार लोगों में से एक है जिसने ना केवल अपनी जिन्दगी संवारी बल्कि सरिता तथा बाद में आश्रम सम्हाल कर अन्य अनाथ बच्चों का जीवन संवारने का कार्य किया। समाज के हर तबके में ऐसे सहयोगी लोगों की आवश्यकता है। तभी हम नई पीढी को एक स्वस्थ्य व सुन्दर समाज दे सकेंगे। कहानी की शुरूआत के लिए आपको एकबार पिफर बधाई।
जवाब देंहटाएंshukriya neeraj ji
हटाएंbahut hi achchi kahani sach... :)
जवाब देंहटाएंBahut hi achhi kahani hai ...Anath bachho ki manesththi ujagar hue hai....
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