उपासना सियाग |
रागिनी ने अपने बेटे
विक्रम को बताया , वह आगरा जाने
वाली है तो वह शरारत से मुस्करा उठा और बोला , " माँ ,
वहां
पर अस्पताल बहुत अच्छा है ...!'
रागिनी थोडा चौंकी , क्यूंकि वह तो कोई और ही काम जा रही थी।
बीमार तो नहीं थी वह।
बेटे के चेहरे को देख वह
भी हंस पड़ी , बोली ," अच्छा मजाक है
...!"
शाम को पति से कहा जोकि
कुछ दिनों से टूर पर शहर से बाहर थे।
वह भी बोल पड़े , " अच्छे से चेक करवा कर
आना।"
इस बार रागिनी को बात
चुभ सी गयी। सोचने लगी कि आधी से ज्यादा जिन्दगी घर - गृहस्थी में गुज़ार दी , कभी खुद के लिए सोचा भी नहीं।और अब भी कोई
घूमने नहीं जरुरी काम है तब ही जा रही हूँ फिर
भी पागल करार दी जा रही हूँ।
लेकिन रागिनी ऐसी भी
नहीं थी कि जो बात उसे बुरी लगे और वह उसका जवाब ना दे और प्रतिकार ना करे।
बोली , " आदरणीय पति जी , आपको और बच्चों को लगता है के मैं पागल
हूँ ...! तो जी हाँ ...! मैं थोड़ी पागल तो हूँ , आपके लिए ,
अपने
बच्चों के लिए और अपनी गृहस्थी के लिए ...! जरा सोचिये अगर मेरा दिमाग
टीक हो कर सेट हो गया तो आप सब का क्या होगा। "
उधर से एक जोर से हंसी
की आवाज़ गूंजी जिसमे ढेर सारा प्यार था।
लेखिका परिचय उन्हीं के शब्दों में
मैं , उपासना सियाग अबोहर पंजाब में रहती हूँ . महारानी कोलेज से बी .
एस . सी . किया हुआ है . पेशे से सामान्य गृहिणी हूँ . पढने लिखने का शुरू से ही
शौक रहा है .अब जिम्मेदारियां कम हुयी है तो लिखना शुरू किया . मेरी कई रचनाये
प्रकाशित भी हुयी है ....
उधर से एक जोर से हंसी की आवाज़ गूंजी जिसमे ढेर सारा प्यार था।
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ढेर सारा प्यार
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